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नई गजल: होश के थपेड़े…

Anilaamil
Anilaamil
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खुशरंग  परिंदे  तेरे  पर की क़िताब में;
कितने ही आसमान हैं बाकी हिसाब में।

करता भी क्या मैं हुस्नतर ज़ालिम के सितम पर,
एक  दाग़  बेश  ढूंढ लिया माहताब में।

यूं ही न बेख़ुदी में वो करता रहा दीदार,
टूक उंस भी नुमाया होगा इताब में।

मेरी मैकशी पे शेखों में जंग छिड़ गई;
आबे-वज़ू मिला क्या मेरी शराब में।

ये होश के थपेड़े बदज़ात, बदहवास;
अरमान के दरीचे खुलते हैं ख्वाब में।

अनिल ‘आमिल’

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