Menu
blogid : 9946 postid : 3

नई गजल: होश के थपेड़े…

Anilaamil
Anilaamil
  • 5 Posts
  • 0 Comment

होश के थपेड़े…

खुशरंग परिंदे तेरे पर की क़िताब में;
कितने ही आसमान हैं बाकी हिसाब में।

करता भी क्या मैं हुस्नतर ज़ालिम के सितम पर,
एक दाग़ बेश ढूंढ लिया माहताब में।

यूं ही न बेख़ुदी में वो करता रहा दीदार,
टूक उंस भी नुमाया होगा इताब में।

मेरी मैकशी पे शेखों में जंग छिड़ गई;
आबे-वज़ू मिला क्या मेरी शराब में।

ये होश के थपेड़े बदज़ात, बादहवास;
अरमान के दरीचे खुलते हैं ख्वाब में।

अनिल ‘आमिल’

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply