Anilaamil
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मेरा मानना है की ‘मानव-जनित’ संसार बार-बार चोट खाने वाला एक फुदकता बच्चा है। कुदरत की एक फीसदी चूक, सौ प्रतिशत शुद्ध विज्ञान को मिनटों में तबाह कर देती है। इसीलिए मैं ‘मानव-जनित’ धर्म पर भी यकीन नहीं करता, जो बेशुमार फित्ने का सबब है।
वहीं प्रकृति-जनित धर्म की छाव में सुबह-शाम जीकर भी हम उसे मान्यता नहीं देते। कुदरत ने तो बस दो ही धर्म बनाए हैं। स्त्री और पुरुष। मनुष्य ही क्या, पेड़-पौधे, जानवर, जमीन-पानी, सब जगह लागू है… और दोनों के बीच सनातन-स्वतःस्फूर्त ‘सद्भाव’. किसी भाईचारा कमेटी की जरूरत नहीं…
…और दोनों मे जंग ना छिड़े, इसकी ‘युक्ति’ भी अद्वितीय है!
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