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नयी ग़ज़ल : आदमी….

Anilaamil
Anilaamil
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हो फिक्र कौम की और मज़हब पे हो ईमां भी;
पर सच्चा पारसा वो, बन जाए जो इन्सां भी.

मस्जिद से होके गुज़ारे हिन्दू तो अदब के संग,
मंदिर में सर झुकाए इज्ज़त से मुसलमां भी.

नामुमकिन नहीं कुछ, एक बार ठान लो गर,
सजदा करेगा झुककर कदमों पे आसमां भी.

हिन्दुस्तां! तरक्की को और चाहिए क्या?
आवाम भी बहुत है, कुदरत है महरबां भी.

कुछ हाथ हम बाधाएं, कुछ हाथ तुम बढ़ाओ,
मिट जायेंगी पलभर में, सदियों की दूरियां भी.

अनिल ‘आमिल’

पारसा- आस्तिक

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